Last modified on 10 अगस्त 2019, at 21:10

शहर-ए-ज़ुल्मात को सबात नहीं / हबीब जालिब

ऐ निज़ाम-ए-कोहन के फ़रज़न्दो
ऐ शब-ए-तार के जिगर-बन्दो

ये शब-ए-तार जावेदाँ तो नहीं
ये शब-ए-तार जाने वाली है
ता-ब-कै तीरगी के अफ़्साने
सुब्ह-ए-नौ मुस्कुराने वाली है

ऐ शब-ए-तार के जिगर-गोशो
ऐ सहर-दुश्मनो सितम-गोशो
सुब्ह का आफ़्ताब चमकेगा
टूट जाएगा जहल का जादू

फैल जाएगी इन दयारों में
इल्म-ओ-दानिश की रौशनी हर-सू
ऐ शब-ए-तार के निगहबानो
शम-ए-अहद-ए-ज़ियाँ के परवानो

शहर-ए-ज़ुल्मात के सना-ख़्वानो
शहर-ए-ज़ुल्मात को सबात नहीं
और कुछ देर सुब्ह पर हंस लो
और कुछ देर कोई बात नहीं