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शहर अँधेरे में / कुमार रवींद्र

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बहुत रोशनी
राजमहल के परकोटे में
सारा शहर अँधेरे में डूबा है
 
ऊँचे-ऊँचे कंगूरों पर
धूप बड़ी है
नीचे परछाईं में सिमटी
प्रजा खड़ी है
 
लंबी-चौड़ी दीवारें हैं
राजभवन की
किरणों का पल इनके घेरे में डूबा है
 
उजली मीनारों में बंदी
नई रश्मियाँ
नीचे वही पुरानी
धुँधली कुहा-भस्मियाँ
 
मैली हैं साँसें बस्ती के
कोलाहल की
वातावरण धुएँ के डेरे में डूबा है
 
स्वप्नलोक में
ऊपर-ऊपर तैर रहे हैं
नीचे अंधकार के
सागर बहुत बहे हैं
 
बड़े चतुर हैं राजपथों के
सारे प्रहरी
सूरज तहख़ानों के फेरे में डूबा है