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शहर आगरा / नज़ीर अकबराबादी

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रखता है गो क़दीम<ref>आदि काल से</ref> से बुनियाद आगरा।
अकबर के नाम से हुआ आबाद आगरा॥
यां के खण्डहर, न और जगह की इमारतें।
यारो अ़जब मुक़ाम है दिल शाद<ref>प्रसन्नचित्त</ref> आगरा॥
शद्दाद<ref>बहुत अधिक अत्याचार करने वाला एक प्राचीन बादशाह जो अपने को ईश्वर कहलवाता था, उसने दौलत लगाकर एक कृत्रिम स्वर्ग बनवाया</ref> ज़र लगा न बनाता बहिश्त को।
गर जानता कि होवेगा आबाद आगरा॥
तोड़े कोई क़िले को कोई लूटे शहर को।
अब किस से अपनी मांगे भला दाद आगरा॥
अब तो ज़रा सा गांव है, बेटी न दें इसे।
लगता था वर्ना चीन का दामाद आगरा॥
एक बारगी तो अब मुझे यारब तू फिर बसा।
करता है अब खु़दा से यह फ़र्याद<ref>सहायता के लिए पुकार</ref> आगरा॥
एक खू़़बरू <ref>रूपवान्</ref> नहीं है यहां वर्ना एक दिन।
था रश्के हुस्न बलख़ो नौशाद आगरा<ref>आगरे पर बलख नगर भी जलन करता था</ref>॥
हरगिज वतन की याद न आवे उसे कभी।
जो करके अपनी जां को करे शाद आगरा॥

इसमें सदा खु़शी से रहा है तेरा ”नज़ीर“।
यारब हमेशा रखियो तू आबाद आगरा॥

शब्दार्थ
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