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शहर का सबसे बूढ़ा / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
(देवेन्द्र सत्यार्थी के लिए कविता)
दाढ़ी में हंसी
कि हंसी में तैरती है दाढ़ी
उस खुली दाढ़ीदार हंसी में
खुलता चला जाता है एक समंदर...
उस समन्दर में
लहर पर लहर
नाचती
एक-दूसरे पर
लहरों में-
मछलियां, सीपियां, दरवेश और गुलबानो
इब्न बतूता फादर टाइम
भूली भटियारिन
एक मछुआ एक मछुआरिन
पुल कंजरी, गांधी बाबा, अंधा हाथी और इतिहास...
वह आदमी
जो इतिहास में सबसे ताजादम है
और शहर का सबसे बूढ़ा-
उससे मिलने के बाद
हर बार
दुखने क्यों लगता है सिर
नसें चटचटाती हैं...
उसके साथ-साथ देर तक
हंसते-कहकहाते
बहते-बहते
लौटो, तो क्यों लगता है
जैसे सदियों की धूलभरी यात्रा से लौटे हों
और फिर चुप्पी
घनघोर चुप्पी
ठोस और रवेदार-
फिर किसी से
बात करने का मन नहीं होता...