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शहर ख़ाली है यहाँ ख़ौफ़ का फेरा होगा / रवि सिन्हा

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शहर ख़ाली है यहाँ ख़ौफ़ का फेरा होगा
इस बयाबाँ में शहंशाह का डेरा होगा

तख़्त-ए-ताऊस पे क़ातिल के जम्हूरी दावे
इल्म के दैर<ref>मन्दिर (temple)</ref> में जाहिल का बसेरा होगा

दस्त-ए-अत्फ़ाल<ref>बच्चों के हाथों में (chindren’s hands)</ref> मशीनें हों कि तलवारें हों
ज़ेह्न में क़ौम के मज़हब का अँधेरा होगा

मैं कोई ख़ल्क़<ref>जनता (people)</ref> नहीं हूँ कि इबादत में रहूँ
दिल कोई मुल्क नहीं है कि ये तेरा होगा

सुब्ह ऐसी कि दिमाग़ों में उजाले दाख़िल
शाम आयी तो मुफ़क्किर<ref>चिन्तक (thinker)</ref> को सवेरा होगा

शब्दार्थ
<references/>