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शहर गाँव का मंजर / हरिवंश प्रभात

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शहर गाँव का मंज़र, देखो कैसा भाई है।
पत्नी है बाज़ार में, घर में रहती दाई है।

अफ़सरों-कर्मचारियों की बात यह सभी की है,
एक भर का वेतन है, चार भर की कमाई है।

थामना नहीं हरगिज़, झूठ का कभी दामन,
एक सच्चे इन्सां ने, बात यह बताई है।

रोग जिसे हो जाता है, प्रेम का, मुहब्बत का,
डॉक्टर बता दीजिए इसकी क्या दवाई है?

करता हूँ वहाँ दर्शन जाके कोई मंदिर में,
जब कभी भी भगवान की मुझको याद आई है।

धन बटोरने में ही रात दिन लगे हैं जो,
टेंशन में जीते हैं, उनकी बी. पी. हाई है।

दास्ताने दुनिया है, ग़ौर से सुनो इसको,
दिल से मैंने लिखा है, जो ग़ज़ल सुनाई है।