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शहर जिंदा है / आभा पूर्वे

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मैं ढूंढती हूँ
अपने इस शहर में
अपनी छोटी-सी वह हवेली
जिसमें मेरे देश की संस्कृति
सोई रहती थी
रेशम की चादर, सोलहो शृंगार करके
मैं ढूंढती हूँ
अपने इस नगर में
महाभारत के कालजयी कर्ण को
जिसने माता कुंती को
पाँच पुत्रों की माँ
बने रहने का वर दिया था
देह छील कर
कवच-कुंडल दे दिया था
इन्द्र को।
मैं ढूंढती हूँ
शहर के
एक कोने से लेकर
दूसरे कोने तक
वासूपूज्य की आत्मा को
जिन्होंने
अहिंसा और प्रेम का
संदेश दिया था।
सारी सृष्टि को ही
मैं ढूंढती हूँ
विक्रमशिला से लेकर
अजगैबी तक की कंदराओं में
सबरपा और जद्दु ऋषि के संदेशों को
कहाँ मिलेंगे मुझे
समुद्र के मंथन से निकले
वे चैदहो रत्न
किसने बांट लिया सबकुछ
छीन कर ले गया
सारी चीजें हमसे
और दे गया है मुझे
हिंसा, दंगा, अविश्वास, अशांति।
किस गली में खो गई
अपनी संस्कृति की किशोरी ?
क्या किसी ने
उसका गला दबा दिया
कौन कहता है यह
कि मुझे अब वे
रत्न नहीं मिलेंगे
मेरे शहर की बहन
मेरे शहर के भाई
आओ हम सब
उसकी तलाश करें
मुझे यकीन है
संस्कृति की किशोरी
अभी जिंदा है
उसे खोजें
उसे मार देने के पहले ही।