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शहर बरसे हैं / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
कोपलें
निकल आई हैं-
और रंग दिखाने
लगी हैं...!
सपनों का रंग
तितली
के पंखों पर
धर.... और
बस उड जा....।
धानी रंग
लिपटा ले
शहर आ
गया है!
मूल्यों पर
शहर बरसे है
कहर
बनकर...।