शहर में आग-पक्षी / निकअलाय असेयेफ़ / वरयाम सिंह
गिलास में रखी टहनी की ताज़ा महक
कमरे के भीतर से सीधा ले गई खेत में
बाहर थी बारिश और ओले
और गाँव को घेरे रात के गीत ।
पुस्तकों और मित्रों के साथ
बहस में उलझ गई थी महक,
ताज़गी ने टुकड़े-टुकड़े कर दिए घर और विवेक के
सड़कें शोर कर रही थीं बेवजह
रात को समेट कर कोई फेंक आया था झाड़ में ।
सहमे-सहमे बादलों के बीच चमक रही थी बिजली
खिड़कियों को लुभाती बुला रही थी पास :
'निकल आओ बाहर, ओ प्रिय,
मैं इतनी ऊँचाई पर हूँ नहीं
चाहो तो गिर सकती हूँ मेज़ पर तुम्हारे पास ।
प्रिय, निकल आओ बाहर
घरों से, वाद-विवाद और ज़ख़्मों से
वरना हवाएँ घोंट डालेंगी गला शहर का
रौंदे गए पुदीने के अपराध में ।
अन्यथा चिमनियों को उगलना होगा धुआँ आकाश में
मुरझाना पड़ेगा सेबों को तुम्हारे उद्यान में,
तुमने मुझे पहचाना नहीं ?
मैं ही हूँ वह आग-पक्षी
फँसूँगा नहीं आग के पिंजरे में ।
शहर भरा पड़ा है धुएँ, कीचड़ और कड़वाहट से,
सेठों की दुकानों में फड़फड़ाहट है, पर पते नहीं ।
ओ प्रिय, भाग आओ बाहर पहाड़ी की तरफ़
जिस पर सीढ़ी से चढ़ सकती हो तुम ।
श्वेत सागर की लहरों जैसे चौंधियाते आकाश में
लक्ष्य साधा है खड़िया से भी सफ़ेद लहर ने
भाषा और शहर दोनों पड़ गए हैं गूँगे
सन से कहीं अधिक चमकती वह
सबको लगा रही है अपने गले ।
पेटी को गियर पर रखने में सफल हुआ
भोंपू में से भाप... साधारण-सी यह दन्तकथा :
बारिश और ओलों के बीच टेढ़ी तीव्र गति से
अँगुलियों में सरासराहट पैदा करता है पूँछ का एक पर ।
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Николай Асеев
Жар-птица В Городе
Ветка в стакане горячим следом
прямо из комнат в поля вела,
с громом и с градом, с пролитым летом,
с песней ночною вокруг села.
Запах заспорил с книгой и с другом,
свежесть изрезала разум и дом;
тщетно гремела улицы ругань -
вечер был связан и в чащу ведом.
Молния молча, в тучах мелькая,
к окнам манила, к себе звала:
Миленький, выйди! Не высока я.
Хочешь, ударюсь о край стола?!
Миленький, вырвись из-под подушек,
комнат и споров, строчек и ран,
иначе - ветром будет задушен
город за пойманный мой майоран!
Иначе - трубам в небе коптиться,
яблокам блекнуть в твоем саду.
Разве не чуешь? Я же - жар-птица -
в клетку стальную не попаду!
Город закурен, грязен и горек,
шелест безлиствен в лавках менял.
Миленький, выбеги на пригорок,
лестниц не круче! Лови меня!
Блеском стрельнула белее мела
белого моря в небе волна!..
Город и говор - всё онемело,
всё обольнула пламенней льна.
Я изловчился: ремень на привод,
пар из сирены... Сказка проста:
в громе и в граде прянула криво,
в пальцах шипит - перо от хвоста!
1922 г.