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शहर में बसकै, के खोया के पाया / रामफल चहल

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जिन लोगों का जन्म ठेठ देहात में हुआ और गांव की संस्कृति में पले-बढ़े तथा नौकरी के लिए शहर आकर वही के हो कर रह गए। उनके दिल में गांव की याद आज भी ज्यों की त्यों ताजा है और किस प्रकार एक ग्रामीण बालक उच्च अधिकारी बनकर भी अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है और उसके दिल में अपनी मां तथा गांव की यादें किस प्रकार हिलोरें मारती है। उसका वर्णन मैनें स्वयं भोगे ग्रामीण जीवन पर आधारित इस कविता में किया है।

इस शहर नै बहोत सम्मान दिया सै, पर मेरी मां के बदले म्हं
ओहदा, कार, मकान दिया सै, पर मेरी मां के बदले म्हं
नुहा-धुवा अर कालस घाल कै, काला टीका लाया करती
कल्लेवार टीण्डी हाण्डीवारां मलाई टूअक पै धर खुवाया करती
कुड़ते पै राई गल़ म्हं गण्डा नजरियां तै टोक बचाया करती
देवतैं पै धौक मरा, जोहड़ तैं माटी कढवा स्कूल छोड़ कै आया करती
बड़ा होकै पटवारी बणैगा पड़ोसन दादी न हाथ दिखाया करती
थाम खूब पढाइ़यो पर मारियो मतना मास्टरां का लौटे म्हं दूध भिजवाया करती
नस्तर सुआं आले दिन मन्नै ओबरे म्हं ल्को खुद बस्ता ठाकै ल्याया करती
गुड़गामें की धौक, नौमी की खीर गूगै का झाड़ा जरूर लगवाया करती
अगाऊं पीस कै झाकरे भरती दिवाली पाच्छै माम्यां कै ले जाया करती
उड़ डोवटी की चाद्दर टोपला, कुड़ता, बूट नानी पा मंगवाया करती
होल़े, पीहल, कसार, लापसी, सुहाली, पूड़े, गुलगुले खूब खुवाया करती
आज काजू मेवा मिश्री अर मिष्ठान दिया सै पर मेरी मां के बदले म्हं
जब हुअया दागड़ा आठ पास करी मां रोला रोज मचावण लागी
तीन कोस क्यूं भेजूं पांयां जब महेन्द्र अर भूप्पी की साइकिल आगी
दादी नै लाठी ठाई, मां धमकाई, पर मैं घाघरी के लिपटया जब हांसण लागी
ताऊ छोह म्हं भरग्या, बाब्बू समाई करग्या, अर मेरी सौ रूपइयां की साइकल आगी
मैं बेबे, बुआ, मौसी अर मामां कै साइकल पै चढ़ कै जाण लाग्गया
खाड़े म्हं जाणा जोहड़ म्हं नाहणा चोरी के खरबूजे भी खाण लाग्गया
सौ दण्ड अर दो सौ बैठक मार कै गात म्हं तेल रमाण लाग्गया
एक दिन सतबीर मास्टर घर नै आकै मन्नै सबकै बीच धमकाण लाग्गया
तमनै नहीं सै बेरा, बताणा फर्ज मेरा, यो बीड़ी के सुट्टे लाण लाग्गया
मां नै जुती ठाई, छककै करी धुनाई अर रोकै बोल्ली तू इसे इसे बट्टे लाण लाग्गया
इस शहर नै आज विहस्की सिगरेट अर पान दिया सै मेरी मां के बदले म्हं
फेर गाम छोड़ कै कालेज म्हं आग्या जब दशमी मेरी होग्यी पास
कई दिन लग जी लाग्या कोन्या साथियां बिन था घणा उदास
जब डिग्री होग्यी फार्म भर दिया शहर म्हं मेरै नौकरी थ्यागी
मां नै राजी होकै रिश्ता ले लिया पढ़ी लिखी मेरै बहू भी आग्यी
फेर बालक होग्ये आप्पै म्हं खोगे मां इब कदे कदाऊं आवै सै
बालक दिखै स्याणे सै गिरकाणे कान कै मुबाइल सुहावै सै
मंा हुई पराई पर ना करावै जग हंसाई दे आशीष तम रहो आबाद
पर आड्डे चालैं मेरी ढाल़ पीटीयो ना बालक होज्यां जमां बर्बाद
जी चाहवै मैं गोड्यां लेटूं मां सिर रोळै लाड तैं मारै कड़ पै धोल
जिस जूत्ती तै पीटया श्योकेश मैं धरलूं पर उडै़ धरे मोमैंण्टो उड़ावै मखोल
कम्प्यूटर टी.वी. ड्राइंग रूम आलीशान दिया पर संस्कार छीन लिए मेरे अनमोल
इस शहर नै रामफल तै चहल नाम दिया सै पर मेरी मां के बदले म्हं
इस शहर नै बहोत सम्मान दिया सै, पर मेरी मां के बदले म्हं