भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहर में रात / सुमन केशरी
Kavita Kosh से
शहरों में कभी रात नहीं होती
दिन से ज़्यादा चमकतीं हैं
यहाँ की रातें
यहाँ रातों में
दूर-दूर से पहचानी जाती हैं
नियोन-लाइट दमकातीं इमारतें
तारे डर से दुबके रहते हैं घरों में
क्या पिछले दिनों
आपमें से किसी की मुलाक़ात हुई
अपनी छत पर
सप्तऋषि से ।