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शहर में लड़की / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
शहर में लड़की
खुद बताती है
वह लड़की है
उसने हटवा दिए हैं सारे पर्दे
वह जान गई है सब रिष्तों की गहराई
वह पढ चुकी है हर किताब की ऊंचाई
उसने नाप ली है हर हद की लंबाई-चौड़ाई
अब वह नहीं रहती
स्कूल-कॉलिज की चारदीवारी में
वह आने लगी है
अपने मनचाहे पार्क-रेस्त्रां-बाज़ारों में
कहां? कब? किसके साथ?
प्रश्न बेमानी है
लड़की जाग चुकी है
अपना हक मांग चुकी है
हर काम सोच-समझ कर करती है
बच्ची नहीं है
सयानी है।