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शहर में साँप / 15 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

साँप
फिनू डँसै छै
आदमी जी उठै छै
आदमी एैसन
कहियो नै सोचै छै।

अनुवाद:

साँप
जब पुनः डँसता है
आदमी जी उठता है
आदमी ऐसा
कभी नहीं सोचता है।