भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहर में साँप / 2 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
साँप
नैं डसें
आदमी केॅ/नै तेॅ
मैर जैमें तोंय
आदमी केॅ जहर सेॅ।
अनुवाद:
साँप
मत डँसो
आदमी को/वरना
मर जाओगे तुम
आदमी के जहर से।