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शहर में साँप / 31 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
साँप के विष के दवा बनै छै
किन्तु
आदमी के जहर के
कुच्छों नै।
अनुवाद:
साँप के जहर से दवा बनती है
किन्तु
आदमी के जहर का
कुछ भी नहीं बनता।