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शहर में साँप / 34 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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साँप भाइग रहल रहै
आदमी ओकरा रोक रहल रहै
वैं कहलकै किये रुकवै, कहाँ रुकवै
आबेॅ तेॅ
अपन आस्तिन में भी तोंही रहै छैं।

अनुवाद:

साँप भाग रहा था
आदमी उसे रोक रहा था
साँप ने कहा-क्यों रुकूँ, कहाँ रुकूँ
अब तो
अपने आस्तिन में भी तुम्हीं रहते हो।