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शहर (कस्तूरी कुंडली बसै) / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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पंडुक नें
पुडुकनी सें कहलकै
हम्में एक दिन शहर देखेॅ गेलियै
वहां सड़के रहै उब-डुब
बिजली करै रहै भक-भुक
भीड़ के रेलम पेल सें
आदमी एक दोसरें से करै रहै बक-बुक
आरो जेकरा भी देखलियै
ओकरा विष उगलतें देखलियै
जे अनचिन्हार आकृति सिनी लागै रहै
सब के सब
तबेॅ समझी-गेलियै
हम्में कोय शहर में आय गेलियै।