लुटा दिहल परान जे, मिटा दिहल निसान जे।
चढ़ा के सीस देस के, बना दिहल महान जे ॥1॥
जने-जने जगा गइल, नया नसा पिला गइल।
जला-जला सरीर के, स्वदेस जगमगा गइल ॥2॥
पहाड़ तोडि़-तोडि़ के, नदी के धारि मोडि़ के।
सुघर डहरि बना गइल, जे काँट-कूँस कोडि़ के ॥3॥
कराल क्रान्ति ला गइल, ब्रिटेन के हिला गइल।
बिहँसि के देस के धजा गगन में जे खिला गइल ॥4॥
अमर समर में सो गइल, कलक-पंक धो गइल।
लहू के बूँद-बूँद में, विजय के बीज बो गइल ॥5॥
ऊ बीज मुस्करा उठल, पनपि के गहगहा उठल।
बिनास का विकास में, वसंत लहलहा उठल ॥6॥
कली-कली फुला गइलि, गली-गली सुहा गइलि।
सहीद का समाधि पर, स्वतंत्रता लुभा गइलि ॥7॥
चुनल सुमन सवारि के, सनेह-दीप बारि के।
चली, उतारे आरती, सहीद का मजारि के ॥8॥