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शहीदों का गीत / महेन्द्र भटनागर

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यह शहीदों का अमर पथ
रोकना इसको असम्भव !
मेटना इसको असम्भव !

चल रहे जिस पर युगों से दृढ़ चरण शत-शत निरंतर,
एक धुन है, स्फूर्तिमय क्रम, गान में ले प्रलय का स्वर,
मध्य की अठखेलियाँ तूफ़ान - झंझावात अगणित
ये थके कब, ये रुके कब, ये झुके कब, प्राण के हित?
चल रहे अविराम गति से
रोकना इनको असम्भव !
यह शहीदों का अमर पथ
मेटना इसको असम्भव !

रोक सकते राह के कंटक नहीं, रोड़े नहीं, भय,
तिमिर भी क्या कर सकेगा, हो चुका पथ पूर्व-परिचय,
शृंखलाएँ बंधनों की तोड़ने ये बढ़ रहे हैं,
स्वत्व के संग्राम में औ’ मुक्त होने लड़ रहे हैं,
ये अमर बन मिट रहे हैं
रोकना इनको असम्भव !
यह शहीदों का अमर पथ
मेटना इसको असम्भव !

वेदना शत-शत, मरण-दुख, अश्रु, ममता प्यार, क्रन्दन,
कर नहीं सकते विकंपित मोह के अविराम साधन,
दण्ड, अत्याचार, पशुबल, नाश के हथियार भीषण,
कर सकेंगे मुक्ति-पथ से क्या विपथ? जब है, सुदृढ़ मन!
हो चुकी भीषण परीक्षा
रोकना इनको असम्भव !
यह शहीदों का अमर पथ
मेटना इसको असम्भव !

विश्व के कल्याण की शुभ-भावना साकार करने,
मुक्त जीवन की प्रखरता को बसा, दुख-क्लेश हरने,
ये जगे जब-जब जगत में, न्याय के स्वर को दबाया
ये रहे बस मौन जब-तक, ज़ोर शोषण ने न पाया,
शक्तिमय हुंकार इनकी
रोकना जिसको असम्भव !
यह शहीदों का अमर पथ
मेटना इसको असम्भव !