शहीदोॅ लेली / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
चलें, चलें रे, हमरोॅ लेखनी
लिक्खें अपना खूनोॅ सें,
तोंय शहीदोॅ रो कहानी।
जिनकोॅ कहानी में सनलोॅ खून छै भारत रोॅ,
जोंन धरती रो मांटी में, खून छै वीर शहीदोॅ रोॅ,
आय ओकरे कहानी, हम्में दुहरावै लेॅ चाहै छी,
निर्णय तेॅ करना छै तोरा, कतना हम्में सफल-विफल छी।
सन तीस रो जमाना छेलै, सब आजादी के दिवाना छेलै
शहीदोॅ के मांटी चिता पर, सब फूल चढ़ावै वाला छेलै।
फाँसी चढ़लै भगतसिंह, आजादोॅ भी मरी मिटलै
राजगुरू, सुखदेवोॅ भी, एक्कोॅ कदम नै पीछू हटलै।
फाँसी के तख्तोॅ पर भी, यें वीरें हुंकार करलकै,
ब्रिटिश संसद भी गूंजी गेलै, एैन्होॅ यें आवाज भरलकै।
लाश देखी खुद बेटा रो, लोर माय नें पोछी लेलकै,
खूब्बेॅ करल्हेॅ बेटा हमरोॅ, बिलखी-बिलखी मांय कहलकै।
माय, बहिन छेलै यै आसोॅ में कि भैया हमरोॅ एैतै,
बहुत दिनोॅ रोॅ भुखलोॅ छै , हुनी पेट भरी केॅ खैतै,
मतुर मरि जे गेलोॅ छै, ऊ की ? लौटी केॅ एैलोॅ छै
हों, देशोॅ पर जान गमावैवाला, शहीद तेॅ कहलैलोॅ छै।
सच्चे, देशें याद करतै उनका, अमर शहीद के नामोॅ सें ,
गूंजी उठतै भारत सौसें, नारा इन्कलाबोॅ सें।