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शहीद दो कीलों से जुड़ी तस्वीर नहीं है / समीर राय

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मानचित्र में जहाँ भी हाथ रखता हूँ
शहीद नदी दर नदी ख़ून से भर गए हैं
हमारे सीनों में भर गए हैं नदी की हवा
छोड़ गए हैं चिकनी मिट्टी।
गंगा और गोदावरि, सुवर्ण रेखा के दोनों किनारे
चिकनी मिट्टी और चिकनी मिट्टी

बन्द मुट्ठी हाथ में अगर मिट्टी हो
मैं कसम खाकर कह सकता हूँ
मैना, बादामी शालिख, दुनिया के तमाम पंछियों के
सुर लेकर इस समय हम लोग
शहीद के पास जाकर खड़े हो सकेंगे।

गले को पूरी तरह आवेगहीन बनाकर
कह सकूँगा
फूल नहीं, जिस मिट्टी के लिए लड़ाई है
उसे लेकर तुम लोगों से मिलने आया हूँ

लाखों पाँवों के नीचे अगर चिकनी मिट्टी लगी हो
तो मैं समझूँगा

शहीद दो कीलों से जड़ी तस्वीर नहीं है, तस्वीर नहीं
ख़ून देकर नदी के तट पर चिकनी मिट्टी जो बनाते जाते हैं,
वे लोग इतनी जल्दी फूलों की माला नहीं पहनना चाहते-
नही चाहते।

ख़ून के बराबर नहीं होती हरसिंगार या गुलाब की माला।
फूल से शहीदों को बाद में सजाना

मगर होशियार, जिस धरती के लिए लड़ाई है
उसे किताबों के पन्नों में, कविता की कॉपी में छिपा कर मत रखो।

दुहाई तुम लोगों की, याद रखना
मिट्टी के बगैर किसी फूल, किसी पंछी से
हमारे दोस्तों ने प्यार नहीं किया था।


मूल बंगला से अनुवाद : कंचन कुमार