शहीद / मंजुश्री गुप्ता
लोग पंद्रह अगस्त और
छब्बीस जनवरी को
झंडा फहराते हैं और
देशभक्ति के गीत गाते हैं
मेरे वृद्ध अशक्त माता-पिता
मेरे माला टंगे चित्र के आगे
आँसू बहाते हैं !
मैंने भी सपने देखे थे
सरहद से लौट कर
माँ बाप का इलाज कराऊंगा
पत्नी को खूब घुमाऊंगा
बच्चों को खूब पढ़ाऊंगा
और धूम धाम से उनका
ब्याह रचाउंगा !
मेरी अनुपस्थिति में
आज मेरी पत्नी और बिटिया
झेलती हैं
लोगों की घूरती निगाहें
कोई नहीं सुनता
उनकी दबी दबी सिसकियाँ
और आहें !
मरणोपरांत मिले मुझे
वीरता पुरस्कार
कोई नहीं पूछता
आज कहाँ है मेरा परिवार?
मेरी विधवा पत्नी
थके हुए कदमो से
ओफ़िसों के चक्कर लगाती है
हर रोज संवेदना के दो शब्द
और झूठे आश्वासन के साथ
घर लौट आती है
बच्चों को मेरी बहादुरी के
किस्से सुनाती है
और सबसे छुप छुप के
आंसू बहाती है
मैं अपनी अधूरी ख्वाहिशों
और सपनो के साथ
इनके पास ही मंडराता हूँ
किन्तु शरीर नहीं साथ मेरे
इसलिए कुछ
कर नहीं पाता हूँ।