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शांति, आतंक / मिक्लोश रादनोती
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जब मैं फाटक से बाहर आया तो दस बजे थे
एक डबलरोटी वाला अपनी चमकती हुई साइकल पर गाता चला गया
ऊपर एक हवाई जहाज घरघरा रहा था, सूरज चमक रहा था, दस बजे थे,
मेरी बहन जो मर चुकी थी याद आई और वे सारी आत्माएँ
जिन्हें मैंने चाहा था, जो अब नहीं थीं,
ऊपर मंडराने लगी
मरे हुए मौन लोगों का एक अँधियारा दल ऊपर से गुज़र गया
और अचानक दीवार पर एक साया गिरा,
चुप्पी में सुबह सहम गई, दस बजे थे
सड़क पर शांति थी, आतंक की छुअन भी थी।
रचनाकाल : 1938
अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे