भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शांति-लोक / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


युद्ध की उद्वेग की अब
त्रस्त घड़ियाँ जा रही हैं !

सकल दुनिया आज उत्सुक
स्नेह से भर नयन दीपक
गर्म स्वागत के लिए ही गीत मीठा गा रही है !

आ रहे सुख के बड़े दिन
आ रहा नव मुक्त-जीवन
आज तो युग-कोकिला मधुमास भू पर ला रही है !
1944