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शांति-लोक / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
युद्ध की उद्वेग की अब
त्रस्त घड़ियाँ जा रही हैं !
सकल दुनिया आज उत्सुक
स्नेह से भर नयन दीपक
गर्म स्वागत के लिए ही गीत मीठा गा रही है !
आ रहे सुख के बड़े दिन
आ रहा नव मुक्त-जीवन
आज तो युग-कोकिला मधुमास भू पर ला रही है !
1944