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शाख़ें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आएँगे / मंजूर हाशमी

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शाख़ें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आयेंगे
ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी आयेंगे

इस घर में फूल जैसे फ़रिश्ते भी आयेंगे
स्कूल जब ख़ुलेंगे, तो बच्चे भी आयेंगे

सूरज, निकल तो आयेगा उस शब के बाद भी
इसका यक़ीं नहीं कि उजाले भी आयेंगे

टूटी हुई कमान को अब तक ये आस है
इक दिन उसे सँभालने वाले भी आयेंगे

खु़शबू बता रही है ये सूखी ज़मीन की
इस दश्त ही में सब्ज़ इलाक़े भी आयेंगे

शाख़-ए-बदन<ref>शरीर की डाली</ref> फूल खिलाने की रुत तो आए
बादल ज़मीन-ए-दिल पे बरसने भी आयेंगे

शब्दार्थ
<references/>