भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शाख़ पर ख़ूने-गुल रवाँ है वही / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Kavita Kosh से
शाख़ पर ख़ूने-गुल रवाँ है वही
शोख़ी-ए-रंगे-गुलसिताँ है वही
सर वही है तो आस्ताँ<ref>चौखट</ref> है वही
जाँ वही है तो जाने-जाँ है वही
अब जहाँ मेहरबाँ नहीं कोई
कूचः-ए-यारे-मेहरबाँ है वही
बर्क़<ref>बिजली</ref> सौ बार गिरके ख़ाक हुई
रौनक़े-ख़ाके-आशियाँ है वही
आज की शब विसाल की शब है
दिल से हर रोज़ दासताँ है वही
चाँद-तारे इधर नहीं आते
वरना ज़िंदाँ में आसमाँ है वही
मांटगोमरी जेल
शब्दार्थ
<references/>