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शाख़ पर ख़ूने-गुल रवाँ है वही / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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शाख़ पर ख़ूने-गुल रवाँ है वही
शोख़ी-ए-रंगे-गुलसिताँ है वही

सर वही है तो आस्ताँ<ref>चौखट</ref> है वही
जाँ वही है तो जाने-जाँ है वही

अब जहाँ मेहरबाँ नहीं कोई
कूचः-ए-यारे-मेहरबाँ है वही

बर्क़<ref>बिजली</ref> सौ बार गिरके ख़ाक हुई
रौनक़े-ख़ाके-आशियाँ है वही

आज की शब विसाल की शब है
दिल से हर रोज़ दासताँ है वही

चाँद-तारे इधर नहीं आते
वरना ज़िंदाँ में आसमाँ है वही

मांटगोमरी जेल

शब्दार्थ
<references/>