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शाख से टूटा ज़रूर / ऋचा

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शाख से टूटा ज़रूर
पर फूल ही तो हूँ
घास पर गिर कर
ओस से भीगा ज़रूर
पर फूल ही तो हूँ।
सुर्ख़ रंगों से सजा आज
कल मुरझा जाऊंगा
बिछड़ा चमन से ज़रूर
पर फूल ही तो हूँ।
तेरी उदास-सी आँखो में
एक सुकून ला पाता
अपनी गुलाबी रंगत
तेरे चेहरे पर खिला पाता
जी लेता अपनी ज़िंदगी
छोटी ही ज़रूर
चाहे तेरे हाथों से
ख़ाक में मिल जाऊँ
पर फूल ही तो हूँ।