मांझा ,मेंहदी
द्वारपूजा,जूता छुपाई
चौथी ,चाले
और वलीमा ,मुंह दिखाई
साड़ी रस्में उदास हैं
बैंड बाजा ,घोड़ी सेहरा
बुफ़े डिनर , और नेक वग़ैरह
सब हाथ पे हाथ धरे बैठे हैं
नानबाई और हलवाई
भविष्य को लेकर
ख़ौफ़ज़दा हैं
सहमे सिमटे डरे बैठे हैं
सामाजिक दूरी के इस दौर में
सबकी सहमति से संस्कारों ने
दो दिलों की नज़दीकियों का
प्रबंध कर दिया
मिलके चंद रिश्तेदारों ने ॥