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शान्ति! शान्ति! (अंतिम पद कविता का अंश ) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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शान्ति! शान्ति! सब के जीवन में शान्ति व्याप्त हो।
शान्ति! शान्ति! सब के जीवन में शान्ति व्याप्त हो।
दुखी न कोई रहे कहीं पृथ्वी के ऊपर ,
विपुल शान्ति से हो प्रपूर्ण सब के उर अन्तर।
विपुल शान्ति में गीत कथा मेरी समाप्त हो।
शान्ति! शान्ति! सब के जीवन में शान्ति व्याप्त हो।