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शामिल तू मिरे जिस्म मैं साँसों की तरह है/ रईस सिद्दीक़ी
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शामिल तू मिरे जिस्म मैं साँसों की तरह है
ये याद भी सूखे हुए फूलों की तरह है
दिल जिस का नहीं हर्फ़-ए-मोहब्बत से शनासा
वो ज़िंदगी वीरान मज़ारों की तरह है
फ़ितरत में है दौलत के खिलौनों से बहलना
इक दोस्त मिरा शहर में बच्चों की तर है
हर रात चराग़ाँ सा रहा करता है घर में
इक ज़ख़्म मिरे दिल में सितारों की तरह है
मत खोलियो मुझ पर कभी एहसाँ के दरीचे
ग़ैरत मुझे प्यारी तिरी यादों की तरह है
पत्थर सदा ज़िल्लत के तआकुब में रहेंगे
कोताही-ए-गुफ़्तार गुनाहों की तरह है