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शामिल हैं कितने तंज़ के पत्थर मज़ाक़ में / शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
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शामिल हैं कितने तंज़ के पत्थर मज़ाक़ में
करने लगा सितम भी, सितमगर मज़ाक़ में
मिलता रहा है दर्द जो अकसर मज़ाक़ में
उसको उड़ाता रहता हूँ हँसकर मज़ाक़ में
'हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो’
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
मुझको मना रहा था, मगर ख़ुद ही रूठकर
करने लगा ’हिसाब बराबर’ मज़ाक़ में
हँसते-हँसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद सँवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में