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शामिल हो / सीमा 'असीम' सक्सेना
Kavita Kosh से
तुम शामिल हो चुके हो
मेरी जिन्दगी में मेरे दिल में
मेरी रातों में मेरे दिन में
अब स्वप्न ही स्वप्न हैं आँखों में
जर्रा-जर्रा, कण-कण में दिखते हो तुम
एक कहानी सी बन गये हो
मेरे जीवन में
एक छाया की तरह हो मेरे आस-पास
मेरे हर प्रसंग में
मेरी हर खुशबू में
मेरी खाने की थाली में
पीने के पानी में
फूलों के उस गुलदस्ते में
जो मेज पर सजा है
मेरे कपड़ों के रंगों में
मेरी हरेक बातों में
नाम है तुम्हारा
हर अणु में कदमों की हर राह में
मेरी आँखों में मेरे मन में
मेरे आसमाँ में मेरी जमीं में
पेड़ पौधे नदी नाले
मेरी हर धड़कन में
हर सांस में
कितना छुपाऊँ फिर भी
हर लम्हें में शामिल हो तुम।