भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शामें, अच्छी हों / देवेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
लाख बुरे हों, दिन तो हुआ करें,
शामें, अच्छी हों, कुछ छन गुजरें ।
कमरे में सूनेपन की बातें,
कर लेंगे हम, सुन लेंगी रातें ।
चढ़ती धूप, उतरती किरणों से
कैसे जान बचे, कैसे उबरें !
नदी, पार्कों, लानों की शर्तें,
कच्ची नींव मकानों की शर्तें,
परिचय और अपरिचय की शर्तें,
एक-दूसरे को काटती फिरें ।
आए कोई हवा इधर कट के,
बात करें, बैठें थोड़ा सट के,
कुछ मौसम की,
कुछ बे-मौसम की,
लाएँ ढेरों की ढेरों ख़बरें ।
लाख बुरे हों, दिन तो हुआ करें,
शामें, अच्छी हों, कुछ छन गुजरें ।