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शाम अँधेरे / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध
Kavita Kosh से
आदमी बढ़िया था
कभी न कभी तो उसे जाना ही था
कब तक झेल सकता है आदमी धरती का भार
धरती आदमी से बहुत बहुत बड़ी और भारी है
शाम अँधेरे अकसर आती है उसकी याद।