Last modified on 15 जनवरी 2009, at 22:40

शाम के साहिल से उठकर चल दिए / ओम प्रभाकर

शाम के साहिल से उठकर चल दिए
दिन समेटा, रात के घर चल दिए।

हर तरफ़ से लौटकर आख़िर तभी
तेरे मक़्तल की तरफ़ सर चल दिए।

इक अज़ाने बेनवा ऎसी उठी
झूम कर मिनारो-मिम्बर चल दिए।

है उफ़क के पार सबका आशियाँ
ये सुना तो सारे बेघर चल दिए।

छू गए गर तेरे दामन से कभी
ख़ार भी होकर मुअत्तर चल दिए।

शब्दार्थ:
मक़्तल=वधस्थल
अज़ाने बेनवा=निशब्द अज़ान
मीनारो-मिम्बर=मस्जिद में वह ऊँचा स्थान जहाँ से अजान दी जाती है
मुअत्तर=सुवासित