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शाम को सुबह-ए-चमन याद आई / अहमद नदीम क़ासमी

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शाम को सुबह-ए-चमन याद आई,
किसकी ख़ुश्बू-ए-बदन याद आई|

जब ख़यालों में कोई मोड़ आया,
तेरे गेसू की शिकन याद आई|

याद आए तेरे पैकर के ख़ुतूत,
अपनी कोताही-ए-फ़न याद आई|

चांद जब दूर उफ़क़ पर डूबा,
तेरे लहजे की थकन याद आई|

दिन शुआओं से उलझते गुज़रा,
रात आई तो किरन याद आई|