भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शाम जब पीने को बैठे याद तेरी आ गई / मोहम्मद इरशाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


शाम जब पीने को बैठे याद तेरी आ गई
जख़्मे दिल सीने को बैठे याद तेरी आ गई

भूलना तुझ को जो चाहा खो के अपने आप में
ख़ुद से हम मिलने को बैठे याद तेरी आ गई

हमने सोचा मौत को यूँ मात दे देंगे अभी
चाल जब चलने को बैठे याद तेरी आ गई

जब किसी हमदर्द ने पूछा कहो क्या हाल है
हाले दिल कहने को बैठे याद तेरी आ गई

देख ले ‘इरशाद’ मैं तेरे बिना पल-पल मरा
बिन तेरे जीने को बैठे याद तेरी आ गई