शाम ढले फिर चौबारे पर मुझसे मिलने आये ग़म,
उसकी यादों की गठरी में थे खट्टे कुछ मीठे ग़म,
सारी दुनिया चाहे खुशियां इनका मोल नहीं जाने
जीने का अंदाज़ सिखाते जितने गहरे होते ग़म,
एक चुभन सी दिल मे लेकर चलते हैं वो शाम सहर,
कुछ तो जलते रहते दिल में कुछ ठंडे से रहते ग़म,
चाहे लब ख़ामोश रहे जान ही लेते हैं वो सब
झांक के आंखों में पढ़ लेते हैं जाने क्या क्या ये ग़म
किससे अपना हाल कहें ये सोच के चुप रह जाते हैं
दर दर मारे फिरते रहते बदकिस्मत बंजारे ग़म