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शाम / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
हाँ कि हर शाम अब तुम्हारी है
ये जुनूँ और दिल से उठता धुआँ
तुम्हारी उँगलियों का मुझे छूना
छेड़ना दिल को फिर चुरा लेना,
सोचना रात भर कुछ चुप रहना
ख़्वाब में आना सब मुझे बता देना
चलो ये बात सही है, तुम्हारे दिल की है,
अनसुनी दिल में ही रह जाएगी
आँसुओं में ये बह जाएगी धुआँ-धुआँ
चलो आ जाओ-जाओ तुमसे बात करें
ये शाम प्यासी है, आओ इसे रात करें।