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शाम / नचिकेता
Kavita Kosh से
टूट गिरा पत्ते-सा दिन
धुआँ पहनने लगीं दिशाएँ
दीवालों के दाएं-बाएं
किरणों की नाजुक टहनी पर
झूल रहा छत्ते-सा दिन
गीली चिड़िया की पाँखों से
चूने लगा समय आँखों से
सूख रहा छत की मुँडेर पर
यह कपड़े-लत्ते-सा दिन
नाखूनों से तेज़ हवा के
मुँह पर कई खरोंच लगा के
कालचक्र पर मढ़ी जिल्द से
उघर रहा गत्ते-सा दिन