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शाम / प्रतिमा त्रिपाठी
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शाम,
सारे दिन की भरपाई है
बोझिल मन की मुट्ठीभर कमाई है !
नीली गोद से अपनी शाख पे
लौटते पंछियों की चहचहाहट है !
सफ़र की थकन मिटानेवाली
कुछ पल में आने वाली रात की
सुगबुगाहट है .. शाम !