भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शाम / सौरभ
Kavita Kosh से
ढल गया सूर्य लाली छाई है
आज फिर शाम घिर आई है
आज फिर साँझ का पँछी बोला
आकाश में बदली छाई है
मन्दिर से गूँज रहा घण्टों का नाद
गुरुद्वारे से वाहेगुरु की फुहार आई है
घरों में धूप-दीप हैं जल रहे
चल रही ठण्डी पुरवाई है
टिंकू की माँ आटा है गूँथ रही
दादी ने आरती गाई है
साथियों, आज फिर शाम घिर आई है।