भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शायद अनगिनत किरणें / विजयदेव नारायण साही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

शायद अनगिनत किरनें
मेरे कंधों पर
भारी शहतीरों की तरह रखी हुई हैं

मैं उन्हें देख नहीं पाता
लेकिन खड़े होते ही
हड्डियों को तोड़ने वाला दर्द महसूस करता हूँ ।