शायद आग़ाज़ हुआ फिर किसी अफ़साने का
हुक्म आदम को है जन्नत से निकल जाने का
उन से कुछ कह तो रहा हूँ मगर अल्लाह न करे
वो भी मफ़हूम न समझे मेरे अफ़साने का
देखना देखना ये हज़रत-ए-वाइज़ ही न हों
रास्ता पूछ रहा है कोई मैख़ाने का
बेताल्लुक़ तेरे आगे से गुज़र जाता हूँ
ये भी एक हुस्न-ए-तलब है तेरे दीवाने का
हश्र तक गर्मी-ए-हंगामा-ए-हस्ती है "शकील"
सिलसिला ख़त्म न होगा मेरे अफ़साने का