शायरों का उस समय होता है, यारो ! इम्तिहान ।
छीन ली जाए क़लम जब, काट दी जाए ज़ुबान ।
लाल टोपी देखते गर हो गया होता फ़रार,
जिस्म पर मेरे न होते आज ज़ख़्मों के निशान ।
ख़ूब हैं क़ानून काले ख़ूबियाँ तो देखिए,
झोंपड़ीं में ठीक थे, पर मिल गया है ये मकान ।
कोठियों को रोज़ ही तेवर बदलते देखकर,
झोंपड़ी भी हो रही है धीरे-धीरे सावधान ।