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शाश्वत / हेमन्त कुकरेती
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(एक गढ़वाली लोकगीत से प्रेरित)
पृथ्वी बची रहेगी
नष्ट हो जाएगी दुनिया
बनेगी फिर से
मैं ही रचूँगा सृष्टि
हमेशा नहीं रहेगी
दुख की ज़मींदारी
पत्थर काटकर उभरते
बचे रहेंगे
सुख के हाथ
सदा रहूँगा मैं
बस बदल जाएँगे लोग...