शाहिद-ए-ग़ैब हुवैदा न हुआ था सो हुआ
हुस्न पर आप नै शैदा न हुआ था सो हुआ
ग़म्ज़ा-ए-शोख़-ए-सियह-मस्त तिरा मिज़्गाँ से
क़त्ल-ए-आशिक़ पे सफ़-आरा न हुआ था सो हुआ
हँस के वो ग़ुंचा-ए-दहन मेरी जिगर-ख़्वारी पर
कह दिया तेरा दिलासा न हुआ था सो हुआ
रिश्ता-ए-साफ निगह में हो मुसल्सुल आँसू
सीना-ए-यार में माला न हुआ था सो हुआ
सर-ए-सौदा पे तिरे शेर-ए-रसा से ‘आगाह’
सिलसिला हश्र का बरपा न हुआ था सो हुआ