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शिकवा है दूर ज़ालिम करना मुरव्वतों से / सौदा

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शिकवा है दूर ज़ालिम करना मुरव्वतों से
लबरेज़1 वरना दिल है तेरी शिकायतों से

क़ता:

मुज़्दा2 ये हमसफ़ीरो पहुँचे तुम्हें कि तुम पर
अरसा था तंग3 मेरे नाले की हसरतों से
सो मुझको आसमाँ ने कुंजे-क़फ़स4 को सौंपा
अब चहचहे चमन में कीजे फ़राग़तों5 से

नै6 रात चैन मुझको आहो-फ़ुग़ाँ से अपनी
नै दिन पड़ोसियों को राहत मलामतों से

फ़ंदक़7 चमन में किसकी देखी हैं उँगलियों पर
हर शाख़ सरनिगूँ8 है गुल की ख़िजालतों9 से

काबे अगर न जावें तो क्यों चढ़ें गधे पर
रुसवा जो शैख़ जी हैं, अपनी हिमाक़तों से


क़ता:

'सौदा' वतन को तजकर गर्दिश से आसमाँ की
अवार-ए-ग़रीबी10 है इतनी मुद्दतों से
शौक़ अब ज़बाँ तक अपने हम शहरियों को भूल
नामा11 जो उनक पहुँचा उन बेमुरव्व्तों से
खोला उसे तो हरगिज़ यक लफ़्ज़ भी न समझा
क़ासिद12 से पूछे मानी रो-रो इशारतों से
 
शब्दार्थ:
1. भरा हुआ 2. शुभ संदेश 3. मैदान तंग था 4. पिंजरे के कोना 5. फ़ुरसत 6. न तो 7. मेंहदी 8. नतमस्तक 9. शर्मिंदगी 10. आवारा भटकना 11. पत्र 12. पत्रवाहक