शिकस्त-ए-रंग-ए-तमन्ना को अर्ज़-ए-हाल कहूँ / 'रविश' सिद्दीक़ी
शिकस्त-ए-रंग-ए-तमन्ना को अर्ज़-ए-हाल कहूँ
सुकूत-ए-लब को तक़ाज़ा-ए-सद-सवाल कहूँ
हज़ार रूख़ तिरे मिलने के हैं न मिलने में
किस फ़िराक कहूँ और किसे विसाल कहूँ
मुझे यक़ीं है कि कुछ भी छुपा नहीं उन से
उन्हें ये ज़िद कि दिल-ए-मुब्तला का हाल कहूँ
तू बे-मिसाल सही फिर भी दिल को है इसरार
अदा अदा को तेरी आलम-ए-मिसाल कहूँ
मिज़ाज-ए-महफिल ए गीती अगर न बरहम हो
तो रंग ए ऐश को गर्द ए रूख ए मलाल कहूँ
हवा के दोश पे है एक शोला-ए-लरज़ाँ
कहूँ तो क्या तिरी तहज़ीब का मआल कहूँ
वो एक ख़्वाब जो तामीर आप है अपनी
मैं क्या हक़ीक़त-ए-रानाई ए ख़याल कहूँ
ग़ज़ल की बात रहेगी वहीं अगर सौ बार
जवाब-ए-शोख़ी ओ रानाई-ए-ग़ज़ाल कहूँ
‘रविश’ से सादगी-ए-इश्क़ का तक़ाज़ा है
कमाल-ए-होश को इख़्लास का ज़वाल कहूँ