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शिकायत कुछ नहीं है ज़िंदगी से / ओंकार सिंह विवेक

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शिकायत कुछ नहीं है ज़िंदगी से,
मिला जितना मुझे हूँ ख़ुश उसी से।

ज़रूरत और मजबूरी जहां में,
करा लेती है सब कुछ आदमी से।

असर जो कर न पाए ज़ह्र-ओ-दिल पर,
नहीं कुछ फ़ायदा उस शायरी से।

उसे अफ़सोस है अपने किए पर,
पता चलता है आँखों की नमी से।

न छोड़ेगा जो उम्मीदों का दामन,
वो होगा आशना इक दिन ख़ुशी से।

यक़ीं है जीत ही लेंगे दिलों को,
करेंगे गुफ़्तगू जब सादगी से।

'विवेक' उनको मुक़द्दर से गिला है,
हुए नाकाम जो अपनी कमी से।